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दक्षिणी अफ्रीका का प्राकृतिक प्रदेशों में विभाजन और संक्षिप्त वर्णन

दक्षिणी अफ्रीका के प्राकृतिक प्रदेश में विशाल जंगल, घास के मैदान और बांधों के साथ विस्तृत समुद्र तट होते हैं। यहाँ कई प्रकार के जानवर जैसे शेर, हाथी, गिरगिट, जीरबो, ...

By India Govt News

Published On: 16 September 2023 - 7:53 AM
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दक्षिणी अफ्रीका के प्राकृतिक प्रदेश में विशाल जंगल, घास के मैदान और बांधों के साथ विस्तृत समुद्र तट होते हैं। यहाँ कई प्रकार के जानवर जैसे शेर, हाथी, गिरगिट, जीरबो, बाघ, चीता आदि पाए जाते हैं। इसके अलावा यहाँ विभिन्न प्रकार के पक्षी भी देखे जाते हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं जो अपनी विशेषताओं और संस्कृति के लिए जाने जाते हैं। इस प्रदेश का आर्थिक विकास उन्नत नहीं है लेकिन इसके प्राकृतिक सौंदर्य और विस्तृत समुद्र तट इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाते हैं।

दक्षिणी अफ्रीका के प्राकृतिक प्रदेश

किसी भी देश को प्राकृतिक प्रदेशों में विभाजित करने के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम निश्चित क्षेत्रों की भौतिक और सांस्कृतिक भूदृश्यों की पहचान की जाए तथा प्रादेशिक इकाई का निर्माण करने में धरातलीय, आर्थिक और सामाजिक तत्त्वों के सापेक्षिक महत्त्व का मूल्यांकन किया जाए। वैसे इसके लिए अनेक मानदण्डों पर विचार किया जाता है, लेकिन उनमें से कुछ अन्य मानदण्डों की तुलना में विशेष महत्त्वपूर्ण होते हैं। जैसे—वर्षा, आधारभूत महत्त्व का कारक है जो कि भू-आकृति व मृदा निर्माण, वनस्पति और कृषि कार्यों पर अपना प्रभाव डालती है।

दक्षिणी अफ्रीका को प्राकृतिक प्रदेश में विभाजित कीजिए और उनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।


भौगोलिक पर्यावरण द्वारा प्राकृतिक प्रदेशों का सीमांकन

भौगोलिक पर्यावरण द्वारा निर्धारित सीमाओं में आर्थिक कारक यथा— कृषि मूल्य, श्रमिक आपूर्ति, बाजार, परिवहन की सुविधाएँ इत्यादि और सामाजिक कारक यथा-कृषि फार्म का आकार, कृषकों को तकनीकी ज्ञान, कृषि अर्थव्यवस्था तथा भूमि उपयोग को निश्चित करता है। उपर्युक्त सभी रूप सम्मिलित रूप में कृषि भू-दृश्य को उत्पन्न करते हैं। इस पर नगरीय और औद्योगिक भू-दृश्य अध्यारोपित होता है ।

उपर्युक्त सभी तथ्यों को आधार मानकर दक्षिणी अफ्रीका को निम्नलिखित प्राकृतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है-

(1) दक्षिणी-पश्चिम केप प्रदेश

यह प्रदेश भूमध्यसागरीय जलवायु वाला प्रदेश है यहाँ की भू-आकृतियाँ केप श्रेणियों से जड़ी हुई हैं। यहाँ वलित श्रेणियाँ तटों के समानान्तर हैं जिन पर अपरदन के परिणामस्वरूप विविध स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ है। वर्तमान श्रेणियाँ सामान्य अपनति और मुख्य घाटियाँ समानान्तर रूप में फैली हैं। दो वलनों के मिलने के स्थान पर पर्वतों की जटिलताएँ उत्पन्न हो गई हैं। यहाँ चारों तरफ पर्वतों से घिरे बेसिन हैं। केप श्रेणियाँ पश्चिम की तरफ पश्चिमी और निम्न भूमियों द्वारा घिरी हुई हैं। वर्तमान भू-आकृति अनेक अपरदन चक्रों का परिणाम है, लेकिन प्रवाह प्रणाली केप श्रेणियों से अनुरूपता प्रकट करती हुई यहाँ की मुख्य नदियाँ अभिनतियों का अनुसरण करती हैं।

भौगोलिक परिस्थितियाँ- इस प्रदेश में निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ पाई जाती हैं-

(i) नदियाँ-प्रदेश के पश्चिम की तरफ प्रवाहित होने वाली नदियाँ ग्रेट बर्ग और आलीफेण्ट्स हैं। दक्षिण-पूर्व की तरफ प्रवाहित होने वाली नदी ब्रीड है जिसकी सहायक नदियाँ हेक्स और सोड्रेण्ड हैं।

(ii) पर्वत श्रेणियाँ-प्रदेश में उत्तर से दक्षिण में फैली अनेक वलित पर्वत श्रेणियाँ हैं जिनमें खिर, आलीफेण्ट, स्करवीबर्ग श्रेणी, सेडार बर्गन, कोल्ड बोके वेल्ड पर्वत, ग्रेट विण्टहोइक आदि पर्वत मुख्य हैं। पश्चिम को दक्षिण भाग से अलग करने वाली सुदूर दक्षिण की श्रेणियाँ कोगेलबर्ग, होटेण्टोज हॉलैण्ड पर्वत, ड्रेकिंस्टीन आदि मुख्य हैं। पश्चिम से पूर्व की तरफ विस्तृत श्रेणियाँ रिवियर सोण्डरेन बर्ग, लेंगबर्ग, विटबर्ग, बोण्टेबर्ग, एनिसबर्ग वेजेन बूम्सबर्ग आदि हैं।

(iii) जलवायु-प्रदेश की प्रीष्म ऋतु गर्म और शुष्क तथा शीत ऋतु ठण्डी और वर्षायुक्त होती है। पश्चिमी तट पर अन्ध महासागर की ठण्डी बैंगुला की धारा के ऊपर से आने वाली ठण्डी हवा के कारण यहाँ वर्ष भर कम तापमान पाया जाता है। यहाँ शीत ऋतु में 15° तथा ग्रीष्म ऋतु में 20° सेल्शियस तापमान पाया जाता है। यहाँ दैनिक तापान्तर 2.7° सेल्शियस से 8° सेल्शियस तक पाया जाता है। यहाँ कोहरा व स्तरी बादल छाए रहते हैं। यहाँ पाला नहीं पड़ता है लेकिन दिन का तापमान 18° सेल्शियस तक पहुँच जाता है।

इस प्राकृतिक प्रदेश में पछुवा पवनों के साथ आने वाले चक्रवातों से तटीय निम्न मैदानों में 50 सेमी. और पर्वतीय भागों में 100 सेमी. तक वर्षा हो जाती है। उत्तर व उत्तर-पश्चिम की तरफ वर्षा कम होती जाती है।

(iv) प्राकृतिक वनस्पति-प्रदेश में प्राकृतिक वनस्पति के रूप में सेलेरो फाइलस झाड़ियाँ पाई जाती हैं, लेकिन कृषि के लिए भूमि साफ करने तथा पर्वतों में आग लगने तथा अत्यधिक पशुचारण ने यहाँ के वनस्पति आवरण को ही परिवर्तित कर दिया है।

(v) आर्थिक क्रियाएँ-प्रदेश में विविध पर्यावरणीय दशाओं के कारण विभिन्न प्रकार की कृषि क्रियाएँ करना सम्भव हो गया है। इनमें उन्न के लिए भेड़पालन, मेमनों को माँस के लिए मोटा करना, दुग्ध व्यवसाय, गेहूं व फल उत्पादन आदि शामिल हैं। प्राकृतिक चारागाहों में भेड़पालन का कार्य किया जाता है। दुग्ध व्यवसाय का विकास कृत्रिम चारागाहों के क्षेत्रों में तथा खाद्यान्न का उत्पादन पश्चिमी और दक्षिणी निचले मैदानों में होता है। पर्वतीय बेसिनों में फलों का उत्पादन किया जाता है। घाटियों की तली में सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

इस प्राकृतिक प्रदेश को पश्चिमी निचले मैदान, दक्षिणी निचले मैदान तथा पर्वत, घाटियाँ और बेसिन में विभक्त किया गया है।

(2) दक्षिणी-पूर्वी केप प्रदेश

दक्षिणी अफ्रीका के दक्षिणी-पूर्वी केप प्रदेश का विस्तार 24° पूर्वी देशान्तर से प्रेट की नदी तक है। यह प्रदेश पूर्व में केप वलित पेटी और पूर्वी ढालों को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में है। यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते केप श्रेणियों की ऊँचाई घटती जाती है और अन्त में तटीय पठार में परिवर्तित हो जाती है जो कि केप सेण्ट फ्रान्सिस और पोर्ट अल्फ्रेड के मध्य होती हुई सागर तक पहुँचती है। यहाँ विंटरवर्ग श्रेणी और टेविल माउण्टेन दो प्रकार की धरातलीय इकाइयाँ दृष्टिगत होती हैं।

भौगोलिक परिस्थितियाँ-इस प्रदेश में निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ पाई जाती हैं-

(i) पर्वत श्रेणियाँ-प्रदेश में विटबर्ग पर्वत के उत्तर में स्थलाकृतियाँ ग्रेट इस्कार्पमेण्ट के पीछे हटने से बनी है। तानजेस बर्ग, अमातोला पर्वत, मूट विण्टर बर्ग और कोलोधा पर्वत प्रेट एस्कार्पमेण्ट की पूर्ववर्ती सीमा निश्चित करते हैं।

(ii) नदियाँ-प्रदेश की प्रमुख नदियाँ प्रेनट्स, सण्डे, पेटकी और प्रेट फिश है जो कि दक्षिण-पूर्व की तरफ प्रवाहित होती हैं। इन नदियों के द्वारा 305 मीटर तक गहरे मोड़ों का कटाव किया गया है।

(iii) जलवायु-प्रदेश में वर्षा कम तथा असमान होती है। पोर्ट एलिजाबेथ और ईस्ट लंदन के मध्य में 50 से 75 सेमी. वर्षा होती है जबकि पश्चिम और उत्तर-पूर्व में 75 सेमी. से अधिक वर्षा होती है। प्रदेश के आन्तरिक भागों में धरातल की ऊँचाई और समुद्र से दूरी के कारण कम दूरी पर ही वर्षा की मात्रा में अन्तर पैदा हो जाता है। पूर्व की तरफ वर्षा की मात्रा 150 सेमी. तक पहुँच जाती है।

प्रदेश में तापमान पर ऊँचाई का प्रभाव पड़ने के कारण भिन्नता पाई जाती है। तट के समीप शीत ऋतु में अधिकतम तापमान 21° सेल्शियस और न्यूनतम तापमन 10° सेल्शियस रहता है। यहाँ भीषण गर्मी तथा पाला नहीं पड़ता है। उच्च श्रेणियों पर तापमान हिमांक बिन्दु से कम रहता है। घाटी में गर्मियों के दिन काफी गर्म रहते हैं। यहाँ उच्चतम तापमान 32° सेल्शियस तक पहुँच जाता है, जबकि रात्रि में तापमान 16° सेल्शियस से भी कम पाया जाता है। अतः यहाँ उच्च दैनिक व वार्षिक तापान्तर पाया जाता है ।

(iv) प्राकृतिक वनस्पति-विविध जलवायविक व मिट्टियों के कारण यहाँ प्राकृतिक वनस्पति में अत्यधिक विभिन्नता पाई जाती है। प्रदेश में शीतोष्ण वन, तटवर्ती वन, कंटीली झाड़ियाँ, घास और कारु झाड़ियाँ आदि पाई जाती हैं।

(v) कृषि व पशुपालन-प्रदेश, कृषिप्रधान प्रदेश है। यहाँ विस्तृत पशुचारण, मिश्रित कृषि तथा फलों का उत्पादन विशेष रूप से होता है। तानजेस बर्ग के पश्चिम में भेड़ व बकरी पालन किया जाता है। वर्तमान में यहां मुख्य रूप से मेरीनो भेड़ें पाली जाती हैं। ग्रीष्मकाल में यहां गेहूं व जई की कृषि की जाती है। प्रदेश ऊन, गौ-माँस व हड्डियों के लिए विख्यात है।

(vi) जनसंख्या- प्रदेश में अनेक जातियों के लोग निवास करते हैं। पोर्ट एलिजाबेथ के समीपवर्ती भाग तथा ग्रेट फिश नदी के पश्चिम में यूरोपियन लोग कुल जनसंख्या के 25 प्रतिशत हैं। ग्रेटकी नदी के पूर्व में अफ्रीकन अधिक संख्या में निवास करते हैं

(3) पूर्वी पठार के ढाल

प्रदेश का निर्माण ग्रेट एस्कार्पमेण्ट के लगातार पीछे हटने से हुआ है। यह कटा-भटा भू-भाग है। उत्पत्ति और धरातल के आधार प्रदेश पश्चिम में हाई बेल्ड और पूर्व में जलीय निक्षेप से निर्मित मोजाम्बिक मैदान से अलग हैं। दक्षिण में यह तट तक विस्तृत है ।

भौगोलिक परिस्थितियाँ-इस प्रदेश में निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ पाई जाती है

(i) जलवायु – हिन्द महासागर और महाद्वीप के आन्तरिक भाग में उठने वाले वायु समूहों के अन्तर्सम्बन्ध में यहाँ की जलवायु प्रभावित होती है। ग्रीष्म ऋतु में हिन्द महासागर से आने वाली उष्ण व आर्द्र हवाएँ झंझावात पैदा करती हैं, जिनसे यहाँ अधिकांश वर्षा होती है। तटवर्ती भागों में 100 सेमी. वर्षा होती है। आन्तरिक भागों में खुले ढालों पर 125 सेमी. तथा बन्द घाटियों में 75 सेमी. तक वर्षा होती है।

प्रदेश के तटवर्ती पेटी में औसत तापमान 16° सेल्शियस से 24° सेल्शियस तक रहता है। आन्तरिक भागों में शीतऋतु ठण्डी रहती है। यहाँ न्यूनतम तापमान 1° सेल्शियस तक हो जाता है। प्रदेश के अनेक स्थानों पर पाला भी पड़ता है।

(ii) नदियाँ-पूर्वी ढाल की ऊँचाई 1220 मीटर है तथा साधारण प्रवाह प्रणाली है। यहाँ प्रवाहित होने वाली नदियाँ अंध महासागर में गिरती हैं। उद्गम स्थलों पर नदियाँ ग्रेट एस्कार्पमेण्ट में अपरदन द्वारा संकड़ी घाटियों का निर्माण करती हैं। कुछ नदियाँ 91 मीटर तक ऊँचे जलप्रपातों का निर्माण करती हैं। नेटाल में नदियों ने गहरी घाटियों का निर्माण किया है। पूर्वी तट की नदियों में टूगेला नदी का अपवाह क्षेत्र अधिक विस्तृत है।

(iii) प्राकृतिक वनस्पति-प्रदेश के पूर्वी ढाल लम्बी घास से ढके हुए हैं। उत्तर में 75 सेमी. वर्षा वाले भागों में उपोष्ण सदाबहार वन तथा नेटाल के तटीय भाग में कंटीले वन पाए जाते हैं।

उपविभाग

प्रदेश को निम्नलिखित तीन उपविभागों में विभक्त किया गया है-

  • ट्रान्सकी, नेटाल और स्वाजीलैण्ड के उच्च भाग।
  • र्वी ट्रान्सवाल और पूर्वी स्वाजीलैण्ड के लो-वेल्ड ।
  • तटीय निचले मैदान ।

(4) उच्च वेल्ड पठार

प्रदेश समतल भूमि का विस्तृत भाग है जो कि ग्रेट एस्कार्पमेण्ट से शुरू होकर उत्तर में बैंक वेल्ड पर्वतमाला तक तथा उत्तर-पश्चिम में लेंग बर्गेन और कोराना बर्गेन तक विस्तृत है। कांप पठार उच्च वेल्ड का ही भाग है। बसूतो उच्च प्रदेश भी इसी पठार का भाग है। उत्तरी-पश्चिमी फ्री स्टेट में सैण्ड वेल्ड है।

भौगोलिक परिस्थितियाँ-इस प्रदेश में निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ पाई जाती है-

(1) जलवायु-कम वर्षा, बादल रहित आकाश, दैनिक तापान्तर आदि यहाँ की प्रमुख विशेषताएं हैं। प्रदेश की ग्रीष्म ऋतु गर्म और वर्षायुक्त होती है, जबकि शीत ऋतु ठण्डी और शुष्क होती है। शीत ऋतु में प्रदेश उष्ण शुष्क हवाओं के प्रभाव में रहता है। यहाँ दिन में तापमान 15.5° सेल्शियस रहता है जबकि रात्रि में यह 1.6° सेल्शियस तक गिर जाता है। पूर्व के उच्च भागों में तापमान हिमांक बिन्दु से भी नीचे गिर जाता है।

प्रदेश के दक्षिणी ट्रांसवाल और पूर्वी फ्रीस्टेट में 50 से 100 सेमी. तक वर्षा होती है। जबकि पश्चिम की तरफ कांप पठार पर 37 सेमी. तथा एस्कार्पमेण्ट के समीप 125 से 175 सेमी. तक वर्षा होती है

(ii) नदियाँ-हाई वेल्ड पठार पर पश्चिम की तरफ से बहने वाली नदियाँ हैं जो कि ओरेंज वाल तंत्र की अंग हैं। यहाँ इन नदियों का जल सिंचाई के काम भी आता है।

(iii) प्राकृतिक वनस्पति-प्रदेश में पाई जाने वाली मिट्टियों के कारण मिश्रित घास उगती है। बसूतोलैण्ड पर्वतों पर छोटी घास के मैदान हैं। प्रदेश के पश्चिम में शुष्कता के कारण कंटीली झाड़ियाँ उत्पन्न होती हैं।

उपविभाग

प्रदेश को निम्नलिखित उपविभागों में विभक्त किया गया है— (1) उच्च वेल्ड, (2) ऊपरी कारू ।

(5) बसूतोलैण्ड प्रदेश

प्रदेश औरेंज नदी के ऊपरी बेसिन में विस्तृत है। यह प्रदेश एक पर्वतीय भाग है। यहाँ अत्यधिक पशुचारण व तीव्र ढालों पर कृषि के कारण अपेक्षाकृत अधिक अपरदन हुआ है। पूर्व में प्रदेश का उच्च भाग या ज्वालामुखी भाग है जो कि 3050 मीटर ऊँचा है। यहाँ धरातलीय जल का पूर्णतया अभाव है। मिट्टी हल्की तथा बलुई है। प्रदेश के अधिकांश भाग में ज्वालामुखी चट्टानें पाई जाती हैं। इनमें कटे-फटे पठार की उत्पत्ति हुई है जिनमें तेज ढाल घास से ढके हुए पाए जाते हैं। यहाँ काली मिट्टी का विस्तार पाया जाता है।

(i) आर्थिक क्रियाएँ-प्रदेश के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन है। यहाँ ज्वार, मक्का और बाजरा आदि फसलें मुख्यतया उगाई जाती हैं। प्रदेश के अन्तर्गत देश की कुल कृषि भूमि का 7 प्रतिशत भाग आता है। प्रदेश में भेड़पालन का कार्य मुख्य रूप से किया जाता है। प्रदेश में व्यापार की प्रमुख वस्तु ऊन है। यहाँ खनिजों का अभाव होने के कारण औद्योगिक विकास की संभावना बिल्कुल नहीं है।

(6) ट्रान्सवाल पठारी बेसिन प्रदेश-प्रदेश उच्च वेल्ड से कम ऊँचाई, गर्म जलवायु, कम आर्थिक विकास के कारण अलग है।

(i) बुश वेल्ड-प्रदेश पश्चिम से पूर्व में 400 किमी. और उत्तर से दक्षिण में 1281 किमी. की दूरी में फैला हुआ है। प्रदेश का अधिकांश भाग समतल है। प्रदेश की औसत ऊँचाई 915 से 1220 मीटर के मध्य पाई जाती है। नदियों के दूरस्थ क्षेत्रों में जलाभाव पाया जाता है। बेसिननुमा आकृति के कारण यहाँ भूमिगत जल 7 मीटर से 25 मीटर की गहराई पर मिल जाता है। भूमिगत जल को विण्डपम्प से निकाला जाता है।

उपविभाग

प्रदेश को निम्नलिखित दो उपविभागों में विभक्त किया गया है-

यहाँ की जलवायु अपेक्षाकृत उष्ण है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ का तापमान 24° सेल्शियस से | उमर पाया जाता है। यहाँ वर्षा 50 सेमी. से कम होती है ।

प्रदेश के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुचारण है। पशुचारण में भी माँस वाले पशुओं की धानता रहती है। नदी जल से सिंचाई द्वारा कछारी मिट्टी में तंबाकू और गेहूँ की कृषि की जाती है। यहाँ रसदार फलों के बगीचे भी हैं। यहाँ मक्का की भी कृषि की जाती है ।

प्रदेश खनिज सम्पदा की दृष्टि से भी सम्पन्न है। यहाँ प्लेटिनम, क्रोमाइट, टिन, चूने क पत्थर, संगमरमर आदि खनिज पाए जाते हैं।

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