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भारत को भौतिक विभागों में विभक्त कीजिए तथा उत्तरी पर्वतीय प्रदेश का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

भारत का भौतिक स्वरूप बहुत ही विषम है। उसमें पर्वत, पठार और मैदान सभी उच्चावचीय भिन्नताएँ विद्यमान हैं। लाखों वर्ष पूर्व हुए परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उच्चावचीय के वर्तमान लक्षणों का ...

By India Govt News

Published On: 16 September 2023 - 7:35 AM
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भारत का भौतिक स्वरूप बहुत ही विषम है। उसमें पर्वत, पठार और मैदान सभी उच्चावचीय भिन्नताएँ विद्यमान हैं। लाखों वर्ष पूर्व हुए परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उच्चावचीय के वर्तमान लक्षणों का विकास हुआ है। भारत के सम्पूर्ण क्षेत्रफल के 10.7% भाग पर पर्वत, 18.6% भाग पर पहाड़ी, 27.7% भाग पर पठार तथा 43% भाग पर समतल मैदान फैले हुए हैं। इन विविध धरातलीय स्वरूपों तथा उच्चावच के आधार पर भारत को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है— (1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश, (2) उत्तर का बड़ा मैदान, (3) दक्षिण का पठार, तथा (4) तटीय मैदान और द्वीप।

भारत को भौतिक विभागों में विभक्त कीजिए तथा उत्तरी पर्वतीय प्रदेश का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

(1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश

भारत के लगभग 20 प्रतिशत भाग पर फैला हुआ ऊंचे पर्वतों का एक विस्तृत प्रदेश है। इस पर्वतीय प्रदेश के अन्तर्गत हिमालय पर्वत, कराकोरम पर्वत, लद्दाख का पठार तथा पूर्वांचल का पहाड़ियों का क्षेत्र आदि सम्मिलित है ।

हिमालय पर्वत

भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत पश्चिम से पूर्व की ओर 2400 किमी. की लम्बाई में एक वृहद् चाप के आकार में फैला हुआ है। इसकी चौड़ाई 150 किमी. से 400 किमी. तक है । जहाँ आज हिमालय पर्वत है वहाँ आज से लगभग 60 करोड़ वर्ष पहले ‘टेथिस’ नाम का सागर लहराता था । दो विशाल भूखण्डों से घिरा यह एक लम्बा और उथला सागर था ।

इसके उत्तर में अंगारा लैंड तथा दक्षिण में गोंडवाना लैंड नाम के दो भूखण्ड थे। टेथिस सागर म्यांमार (बर्मा) की वर्तमान सीमा से लेकर पश्चिमी एशिया के विशाल क्षेत्र में फैला था । इसका विस्तार पश्चिम में इससे भी आगे था। इसमें अफ्रीका के उत्तर पूर्वी तथा मध्य भाग सम्मिलित थे। टेथिस सागर की पश्चिमी सीमा वर्तमान दक्षिण अटलाण्टिक सागर की गिनी की खाड़ी को स्पर्श करती थी। लाखों वर्षों तक इन दो भूखण्डों का अपरदन होता रहा तथा अपरदित पदार्थ कंकड़, पत्थर, मिट्टी, गाद आदि टेथिस सागर में जमा होते रहे। ये दो विशाल भूखण्ड धीरे-धीरे लेकिन लगातार एक-दूसरे की ओर खिसकते रहे। इस प्रकार इस सागर पर दो विरुद्ध दिशाओं से भारी दबाव पड़ने लगा।

परिणामस्वरूप यह सिकुड़ने लगा तथा इसमें जमी मिट्टी आदि की परतों में मोड़ पड़ने लगे और ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में उभर कर पानी से ऊपर आ गये। यह क्रिया निरन्तर चलती रही और कालान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम आज हिमालय के नाम से पुकारते हैं।

हिमालय की ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ उस पर नदियाँ तथा अनाच्छादन के दूसरे कारक सक्रिय हो गये। पर्वत प्रदेश को अपरदित करने के साथ-साथ उनके द्वारा भारी मात्रा में गाद टेथिस सागर में जमा किया जाने लगा। इस प्रकार यह सागर सिकुड़ता ही गया। परिणामस्वरूप आज भारत और पाकिस्तान में फैले उत्तरी मैदानों या गंगा-सिन्धु के मैदानों की उत्पत्ति हुई। भारत के उत्तर-पूर्वी भाग और बांगलादेश में ब्रह्मपुत्र नदी ने भी इसी प्रकार के मैदानों का निर्माण किया।

हिमालय का भौगोलिक वर्गीकरण

हिमालय का पर्वतीय भाग एक श्रेणी के रूप में न होकर समान्तर रूप में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर कई श्रेणियों के रूप में फैला हुआ है। श्रेणियों के विस्तार के अनुसार हिमालय को निम्नलिखित भौगोलिक विभागों में बाँटा गया है- (i) मुख्य हिमालय श्रेणी, (ii) लघु हिमालय श्रेणी, तथा (iii) शिवालिक श्रेणी ।

(i) मुख्य हिमालय श्रेणी—यह संसार की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है। इसकी औसत चौड़ाई 25 किमी. तथा ऊँचाई 6100 मीटर है। एशिया की 95 चोटियाँ, (कुल 97 चोटियाँ) जिनकी ऊँचाई 7500 मीटर से अधिक है, इसी भाग में स्थित हैं। संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउण्ट एवरेस्ट चोटी (8848 मीटर) इसी भाग में स्थित है। इस भाग की अन्य चोटियाँ कंचनजंघा (8598 मीटर), मकालू (8481 मीटर), धौलागिरि (8172 मीटर), नगापर्वत (8126 मीटर), अन्नपूर्णा (8078 मीटर), गौरीशंकर (8013 मीटर) तथा नन्दा देवी (7817 मीटर) हैं। इस पर्वतीय श्रेणी का ढाल दक्षिण की ओर है।

गंगा, यमुना तथा उसकी सहायक नदियों के उद्गम स्थान श्रेणी के मध्य भाग में हैं। इस श्रृंखला की रचना ग्रेनाइट, नीस, शिष्ट आदि चट्टानों से हुई है। मुख्य हिमालय पश्चिम में नागा पर्वत से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र घाटी के समीप नमचा बरवा चोटी तक एक अभेद्य दीवार की तरह खड़ा हुआ है, जिसको पार करना बहुत कठिन है। मुख्य हिमालय श्रेणी के मुख्य दर्रे बुर्जिल, जोजिला, बरालाचाला, शिफ्की, थागला, नीतिलिपुलेख, नाथुला व जेलपला हैं।

(ii) लघु हिमालय–मुख्य हिमालय के समानान्तर दक्षिण में लघु हिमालय श्रेणियाँ फैली हैं। इनकी चौड़ाई 60 से 100 किमी. तक तथा ऊँचाई 1000 से 4500 मीटर है। इस भाग की संरचना में अवसादी चट्टानों की प्रधानता है। कहीं-कहीं चट्टानें रूपान्तरित होकर स्लेट, संगमरमर और क्वार्टजाइट में बदल गयी हैं। लघु हिमालय के मुख्य ऊँचे शिखर पीर पंजाल, नागटिब्बा, धौलाधार और मंसूरी श्रेणी हैं। ये श्रेणियाँ जाड़ों में हिम से ढकी रहती हैं। शिमला, मंसूरी,नैनीताल,दार्जिलिंग आदि पर्वतीय नगर लघु हिमालय में बसे हैं जिनकी ऊँचाई 1500 से 2400 मीटर है।

(iii) शिवालिक श्रेणी—यह श्रेणी पश्चिम में पोटवार बेसिन के दक्षिण से प्रारम्भ होकर पूर्व की ओर कोसी नदी तक 2400 किमी. की लम्बाई में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण की ओर विस्तृत है। इनके और लघु हिमालय के बीच में कुछ लम्बाकार घाटियाँ पाई जाती हैं। हिमालय के पश्चिमी भाग में ऐसी घाटियों को दून तथा पूर्वी भाग में द्वार कहा जाता है; जैसे—-देहरादून, हरिद्वार आदि ।

(iv) ट्रांस हिमालय श्रेणी—यह महान हिमालय के पीछे स्थित है, जो मध्य में 225 कि.मी. तथा पूर्व और पश्चिम की ओर किनारों पर क्रमशः 40 कि.मी. तथा 964 कि.मी. चौड़ी हैं और 3,100 से 3,700 मीटर ऊँची हैं। बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों तथा उत्तर की ओर भूमि से घिरी हुई झीलों में गिरने वाली नदियों के मध्य यह श्रेणी जल-विभाजन का कार्य करती है और इसमें 5,200 मीटर औसत ऊँचाई पर कई दर्रे स्थित हैं।

हिमालय के दीर्घ मोड़-हिमालय पर्वत श्रेणियों के उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व में दीर्घवलन अर्थात् मोड़ हैं जिन्हें उत्तर-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्वी मोड़ कहते हैं। दक्षिण-पश्चिम में सुलेमान व किरथर श्रेणी तथा उत्तर-पूर्व में पटकोई, नागा, मणिपुर, लुशाई, अराकान श्रेणी आदि स्थित हैं ।

सिडनी बुराई नामक भूगर्भशास्त्री ने महान हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण निम्नलिखित चार भागों में किया है-

(1) पंजाब हिमालय –यह सिन्धु से सतलज तक 562 कि.मी. लम्बा है । तारा कुटी और ब्रहासकल इसकी प्रमुख चोटियाँ हैं तथा पीरपंजाल, छोटागली, नुरयूर, चोरगली, जामीर, बनी- हाल,बुर्जिल, गुलाबपर, जोजिला, आदि इसमें प्रमुख दर्रे हैं ।

(2) कुमायूँ हिमालय -यह सतलज से काली नदी तक 320 कि.मी. लम्बा है। अल्मोड़ा, गढ़वाल, नैनीताल जिले इसमें ही स्थित हैं। इसकी मुख्य ऊँची चोटियों में बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना, जाओनली, कामेत, गंगोत्री व नंदादेवी और शिवलिंग हैं। यह अधिकतर स्फटिक चट्टानों से बना है और कहीं-कहीं उत्तर में ट्रियासिक युग की तथा दक्षिण में रूपान्तरित शिष्ट, स्लेट और नीस शैलें मिलती हैं तथा भागीरथी और यमुना नदियों के उद्गम हैं ।

(3) नेपाल हिमालय -यह काली और तिस्ता नदी के बीच 800 कि.मी. की लम्बाई में फैला है तथा औसतन 6,250 मीटर ऊँचा है। अन्नपूर्णा प्रथम, धौलागिरि, गोसाईथान, कंचनजंगा, मकालू, चोपा, एवरेस्ट आदि ऊँची चोटियाँ इस प्रदेश में हैं। चूने का पत्थर तथा शैल चट्टानें, काले-भूरे शैल, चिकनी मिट्टी युक्त बलुआ पत्थर, क्वार्टज आदि इसमें मिलते हैं। इसके ऊँचे भाग वनस्पतिविहीन हैं किन्तु निचले भागों पर कोणधारी वन मिलते हैं।

(4) असम हिमालय —यह तिस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक 750 कि.मी. लम्बाई में मैदान की तरफ बड़े तेज ढाल में स्थित है। कुल्वा कांगड़ी, काबरु, जांग, सांगला, पोहुनी और चुथल हारी इसकी प्रमुख चोटियाँ हैं। इसमें कई जनजातियाँ रहती हैं।

हिमालय के हिमनद व नदियाँ-हिमालय पर छोटे-बड़े अनेक हिमनद पाए जाते हैं जिनमें कराकोरम का हिमनद विश्व प्रसिद्ध है। ड्रिंकलर, डैनेलो, डिटेरा आदि विद्वानों ने इन हिमनदों की ऊँचाई, आकार-प्रकार व इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला है ।

डॉ. छिब्बर ने हिमालय की नदियों को चार भागों में बाँटा है। हिमालय से 23 प्रमुख नदियाँ निकलती हैं जिनका संबंध तीन बड़ी अर्थात् ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिन्धु नदी की प्रणालियों से है। हिमालय पर्वत की नदियों की अनेक विशेषताएँ हैं।

हिमालय का उद्भव

हिमालय के उद्भव एवं विकास की एक अभूतपूर्व गाथा है जो टेथिस सागर के पैदे में अंगारालैण्ड एवं गौण्डवानालैण्ड से प्राप्त तलछटों के जमाव से प्रारंभ होकर आतंरिक पर्वत निर्माणकारी हलचलों द्वारा नवीनतम मोड़दार श्रेणियों के रूप में इनका समुद्र के गर्भ में जन्म हुआ तथा प्रथम उत्थान क्रिटेशियस युग में (11 करोड़ वर्ष पूर्व), द्वितीय उत्थान अनामायोसीन युग में (6 करोड़ वर्ष पूर्व), तृतीय उत्थान मायोसीन युग में संपन्न हुआ

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