एशिया व आस्ट्रेलिया में 5° से 20° के मध्य व भारत एवं पाकिस्तान में 30° उत्तर तक विस्तृत है । इस प्रकार का जलवायु क्षेत्र काफी हद तक दक्षिणी व दक्षिणी-पूर्वी है में है। इसमें 10° उत्तर व 28° उत्तर कर्करेखा के मध्य के क्षेत्र शामिल है। इसके अन्तर्गत एशिया भारत, पाकिस्तान, म्यांमार, लाओस, फिलीपाइन द्वीपसमूह, दक्षिणी चीन, मध्य अमेरिका, मैक्सिको, दक्षिणी अमेरिका का उत्तरी तटीय भाग, पश्चिमी द्वीपसमूह, पूर्वी ब्राजील का तटीय भाग, अबीसीनिया का कुछ भाग, पुर्तगाली पूर्वी अफ्रीका का तटीय भाग, मेडागास्कर टापू, आस्ट्रेलिया के उत्तरी प्रान्त का समुद्रतटीय भाग तथा क्वीन्सलैण्ड और दक्षिणी न्यूगिनी सम्मिलित हैं।
लेकिन इसमें हिमालय पर्वत व दक्षिणी-पूर्वी एशिया, पाकिस्तान, भारत, बांगलादेश, थाइलैण्ड, वियतनाम, कम्पूचिया, लाओस व दक्षिणी चीन के ऊँचे क्षेत्र शामिल नहीं हैं ।
आर्थिक एवं मानवीय क्रियाएँ
कृषि:-
मानसून प्रदेश के अर्थतन्त्र का मुख्य आधार कृषि है। यह प्रदेश अधिकाधिक फसलों के । उत्पादन के अनुकूल है। खाद्यान्न, रेशेदार फसलें, पेयपदार्थ, व्यापारिक अथवा अर्द्ध-औद्योगिक रोपण कृषि इस प्रदेश की मुख्य उपजें हैं। स्थानीय विविधता के अनुसार यहाँ की फसलों में भिन्नता यहाँ का मुख्य लक्षण है। इस प्रदेश के भू-भागों में चावल, जूट, तिलहन, कपास, चाय, गन्ना तथा गेहूँ मुख्यतः पैदा होते हैं। दक्षिणी-पूर्वी एशिया चावल के लिए प्रसिद्ध है । इस प्रदेश के पश्चिमी तथा अर्द्ध-शुष्क प्रदेश में गेहूँ आदि अन्य फसलें उगाई जाती हैं। कृषि मुख्यतः समुद्र तट एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया के प्रायद्वीपीय एवं द्वीपीय प्रदेशों में अधिक विकसित हुई है।
सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध होने से फसल की पैदावार में वृद्धि हुई है। अबीसीनिया में कहवा अधिक होता है । भारत तथा पाकिस्तान विश्व का 95% जूट पैदा करते हैं। कपास व पटसन व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उगाए जाते हैं। पश्चिमी द्वीपसमूह विशेषत: क्यूबा गन्ने के लिये प्रसिद्ध है। इन प्रदेशों की भूमि इतनी उपजाऊ है कि बहुत कम श्रम से ही पर्याप्त उपज मिल जाती है। इसलिए इन्हें उन्नतिशील प्रदेश कहा जाता है। इस प्रदेश की कृषि में कुछ विशेषताएँ पाई जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- (i) फसलों में विविधता होते हुए भी मुख्यत: खाद्यान्नों की प्रधानता है ।
- खेतों का, सघन जनसंख्या होने के कारण, छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटा होना तथा कुछ नागों में खेतों का आकार इतना छोटा होना कि परिवार का भरण-पोषण भी सम्भव नहीं है ।
- प्रति व्यक्ति कृषियोग्य भूमि का कम होना तथा भूमि पर जनसंख्या का भार अधिक ना । अतः गहन कृषि का प्रचलन है।
- व्यापारिक अथवा रोपण कृषि की फसलों के उत्पादन का क्षेत्र सीमित है। अतः यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अपेक्षाकृत कम ही है।
कृषि के प्रकार-सारे प्रदेश में प्रादेशिक भिन्नता और कृषि की सामान्य दशा एवं विशेषताओं के अनुसार कृषि के स्वरूप में भी भिन्नता मिलती है। इस प्रदेश की कृषि प्रारम्भिक निर्वाहमूलक अवस्था से लेकर विकसित अर्द्ध-औद्योगिक रोपण कृषि के स्वरूप में भी मिलती है। यहाँ पर निम्न प्रकार के कृषि के क्षेत्र पाये जाते हैं-
- निर्वाहमूलक कृषि क्षेत्र-ये मुख्य रूप से उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी मानसून प्रदेश में फैले हैं। इस प्रकार की कृषि में खाद्यान्न उत्पादन मुख्य रूप से होता है। यहाँ गेहूँ, चावल, मक्का मुख्य रूप से उगाया जाता है। इन प्रदेशों में आवागमन के साधनों की कमी है।
- सघन एवं व्यापारिक कृषि-इस प्रदेश के विस्तृत उपजाऊ मैदानों, समुद्रतटीय प्रदेशों और नदियों की घाटियों में इस प्रकार की कृषि देखने को मिलती है। इन भू-भागों में खाद्यान्न की फसलों के अतिरिक्त व्यापारिक फसलें जैसे गन्ना, कपास, जूट, मूँगफली आदि भी उगाई जाती हैं। इस प्रकार गहन कृषि कार्यक्रम के कई स्वरूप इस प्रदेश में मिलते है।
- चावल प्रधान कृषि प्रदेश-ये अधिक वर्षा वाले क्षेत्र हैं जहाँ एक ही खेत में वर्ष में एक से अधिक चावल की फसलें उगायी जाती हैं। इन प्रदेशों में अतिवृष्टि की बाढ़ और सूखे की अनिश्चितता से बचने के लिए कई सिंचाई के साधन भी विकसित किए गये हैं। इन प्रदेशों में भारत का पूर्वी भाग, बांगलादेश, दक्षिणी-पूर्वी एशिया की नदी घाटियाँ एवं उनके डेल्टाई क्षेत्र, चीन का दक्षिणी-पूर्वी मैदानी भाग तथा जापान के समुद्रतटीय प्रदेश मुख्य हैं।
- विविध उत्पादन कृषि-प्रदेश – इस प्रकार के भू-भागों में मुख्यतः ऐसी फसलों का उत्पादन अधिक किया जाता है जिनके लिए कम नमी की आवश्यकता होती है। इनमें गेहूँ, कपास, गन्ना,ज्वार,बाजरा और दालों की खेती मुख्यतः स्थानीय स्थिति के अनुसार होती है। ये प्रदेश उत्तर-पश्चिम चीन तथा पश्चिमी एवं मध्य भारत में फैले हैं। इन प्रदेशों में शुष्क और सिंचाई प्रधान दोनों प्रकार की कृषि पद्धति प्रचलित है।
- बागाती कृषिक्षेत्र – मानसून प्रदेश में सर्वाधिक विकसित खेती के क्षेत्र रोपण कृषि के ही हैं। इस प्रकार की फसलों में रबड़, नारियल, कहवा, चाय, गन्ना आदि मुख्य रूप से आते हैं। • इण्डोनेशिया, मलेशिया, दक्षिणी भारत, वियतनाम, दक्षिणी चीन तथा दक्षिणी जापान में रोपण कृषि के क्षेत्र मिलते हैं ।
मानसून प्रदेश के मनुष्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। प्राकृतिक साधनों का समुचित विकास न होने से अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है ।
खनिज-
इस प्रदेश में शक्ति एवं खनिज संसाधन सामान्य हैं लेकिन इनका वितरण भी बड़ा असमान है।
- कोयला-कोयले के मुख्य भण्डार चीन तथा भारत में हैं। चीन में विश्व के कुल संचित भण्डार का 21.8% तथा एशिया के संचित भण्डार का 44.1% है। इसके मुख्य क्षेत्र शांसी, शेन्सी, कान्सू-होनान प्रदेश हैं। भारत में विश्व का 1.4% तथा एशिया का 2.8% कोयला उपलब्ध है। जापान में कम कोयला मिलता है ।
- पेट्रोलियम-चीन में सिक्यांग, भारत में असम तथा गुजरात तट पर पेट्रोलियम मिलता है। इंडोनेशिया व वेनेजुएला पेट्रोल की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ पेट्रोल पाकिस्तान, मलेशिया तथा म्यांमार में भी मिलता है।
- लोहा- लोहा पूर्वी ब्राजील, भारत और चीन में अधिक मात्रा में जबकि फिलीपाइन तथा हिन्देशिया में अल्प मात्रा में मिलता है।
- मैंगनीज-मैंगनीज के महत्त्वपूर्ण भण्डार पूर्वी ब्राजील, भारत तथा चीन में हैं। विश्व का 9% तथा चीन में 4% मैंगनीज मिलता है।
- टिन-टिन के उत्पादन में यूनान का पठार महत्त्वपूर्ण है। मलेशिया, चीन, थाइलैण्ड और इण्डोनेशिया इसके मुख्य उत्पादक देश हैं।
- बाक्साइट – बाक्साइट के मुख्य भण्डार भारत व चीन में हैं।
- ताँबा – ताँबा उत्पादन में जापान सबसे आगे है। आस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैण्ड प्रान्त में सोना, चाँदी, सीसा, टिन इत्यादि धातुएँ मिलती हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मानसून प्रदेशों में विभिन्न खनिज संसाधन बिखरे पड़े हैं। यहाँ लोहा, कोयला, लोहा व फॉस्फेट आदि खनिज पाये जाते हैं लेकिन यातायात सुविधाओं के अभाव में वे काफी हद तक बिना प्रयोग के पड़े हैं।
मानवीय क्रियाएँ-
उद्योग-
उत्पादन निर्माण क्रिया यहाँ कच्चे माल की उपलब्धता व उपभोक्ताओं के कारण आम है। इस क्षेत्र में उपभोक्ताओं की संख्या 250 करोड़ से भी अधिक है। अकेले भारत में ही 130 करोड़ से अधिक जनसंख्या है। मानसून एशिया कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए प्रसिद्ध रहा है। पहले यहाँ उद्योगों का विकास पूरक उद्यम एवं कला के रूप में किया गया। प्राचीनकाल में सूती और रेशमी वस्त्र, लकड़ी, मिट्टी, हाथीदाँत और कृषि उत्पादों से बनी वस्तुएँ विश्व बाजार में प्रसिद्ध थीं।
औपनिवेशिक काल और राष्ट्रीय भावना के हास के कारण उद्योगों की महत्त्वता घटती चली गई। स्वतन्त्र होने के बाद जापान में औद्योगिक विकास सर्वप्रथम दृष्टिगत होता है। तत्पश्चात् इस प्रदेश के अन्य देशों में औद्योगिक विकास का सूत्रपात हुआ । इस प्रदेश के देशों में उपलब्ध खनिज-संसाधन, कृषि और जन-संसाधन के आधार पर अनेक स्तर के उद्योग विकसित हुए हैं। जिससे इन देशों में औद्योगिक भूदृश्यों की रचना होने लगी है। भारत, चीन व जापान में अनेक आधारभूत उद्योग जैसे लोहा-इस्पात, इन्जीनियरिंग, मशीन और रसायन उद्योगों का विकास हुआ है।
इसी प्रकार कृषि आधारित उद्योगों जैसे वस्त्र, चीनी, कागज, तम्बाकू आदि के उत्पादन में आशातीत प्रगति हुई है। आज एकाकी उद्योगों का विकास अवरुद्ध होता जा रहा है क्योंकि प्रतिस्पर्द्धा के लिए आपसी सहयोग आवश्यक है। इस प्रक्रिया में जहाँ उद्योगों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं वहाँ अनेक उद्योगों के लिए श्रृंखला विकसित होने लगी है। मानसून प्रदेश में ऐसे संशिष्ट अधिकांश जापान, चीन और भारत में विकसित हुए हैं। भारत में मुम्बई, कोलकाता व जमशेदपुर तीन मुख्य औद्योगिक केन्द्र हैं। सूती वस्त्र, पटसन व इस्पात यहाँ उत्पादित होता है।
पाकिस्तान भी औद्योगिक विकास की दिशा में अग्रसर है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में उद्योगों का अभाव है। यह क्षेत्र कच्चे पदार्थ उपलब्ध कराता है। वर्तमान में यहाँ है। उद्योगों का विकास हो रहा है पर यह मुख्यतः चावल, पैट्रोलियम, टिम्बर उद्योग तक ही सीमित इस प्रदेश में वन आधारित कागज उद्योग कुछ ही देशों में विकसित हो पाया है जिसमें जापान, चीन, फिलीपीन्स और भारत अग्रणी देश हैं।
मानव-संसाधन
मानसूनी प्रदेश विश्व के सर्वाधिक सघन बसे क्षेत्रों में से एक है। अकेले भारत में वर्तमान में 130 करोड़ से अधिक आबादी है। अधिकतर लोग गाँवों में रहते हैं। भारत में गाँवों की संख्या 6 लाख से भी अधिक है। चीन में भी जनसंख्या सघन है। इन दोनों देशों में विश्व क 38% जनसंख्या निवास करती है। पाकिस्तान व बांगलादेश में भी काफी गाँव हैं। इन क्षेत्रों के लोग सभ्य व सुसंस्कृत हैं।
हिन्दुओं ने दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, कला, साहित्य व ब्रह्मवाद के क्षेत्र में काफी योगदान दिया है। ऐतिहासिक कारणों से सात से भी अधिक छोटे-बड़े धर्म यहाँ हैं दक्षिणी एशिया के इस क्षेत्र में 200 से भी अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। आस्ट्रेलियाई मानसून क्षेत्र में कम आबादी है। वहाँ के निवासी मुश्किल से एक लाख हैं।
मानसून एशिया ‘मानव सभ्यता का पालना’ कहा जाता है। विश्व के प्रमुख चार धर्मों में से दो धर्मों, हिन्दू तथा बौद्ध धर्म, का जन्मदाता भारत इसी क्षेत्र का भाग है। इस्लाम धर्म का प्रवेश मानसून एशिया में अरब देशों की ओर से हुआ है। यह उत्तरी-पश्चिमी भारत, पाकिस्तान बांगलादेश, मलेशिया और इण्डोनेशिया के द्वीपों में फैल गया। इन तीन धर्मों के अलावा मानसून एशिया में कहीं-कहीं अग्नि-पूजक पारसी भी निवास करते हैं।
जनसंख्या के वितरण को देखने से स्पष्ट होता है कि दक्षिणी-पूर्वी भाग, जो तिब्बत के पठार के पूर्वी भाग से प्रारम्भ होकर मलाया प्रायद्वीप में होता हुआ हिन्देशिया के भूमध्यरेखीय द्वीप सुमात्रा, बोर्नियो और मिडनासो द्वीपों तक चला गया है, में जनसंख्या सबसे कम है। यहाँ जनसंख्या का घनत्व कम है। इस क्षेत्र में बड़े नगरों का भी विकास हो रहा है।
जापान में विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर टोक्यो स्थित है। इस क्षेत्र में समुद्रतट पर स्थित ऐसे बन्दरगाह एवं नगरों की अधिकता है जो विदेशी व्यापार पर एकाधिकार किए हुए हैं। ऐसे नगरों में कराची, मुम्बई, कोलकाता, चटगाँव (बांग्लादेश), रंगून (म्यांमार), केण्टन (चीन), टोक्यो (जापान) मुख्य हैं। मानसून प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्थानों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के स्तर के अनुसार जनाधिक्य का स्तर भिन्न-भिन्न है।
जापान, जावा, चीन और भारत के कई भाग जनाधिक्य वाले प्रदेश हैं, जबकि म्यांमार, लाओस, थाइलैण्ड, बोर्नियो, सुमात्रा, चीन तथा भारत में कुछ भाग जनाभाव से प्रभावित हैं।
कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, ढाका, लाहौर, हैद्राबाद, कानपुर, जयपुर, अहमदाबाद आदि भारत, पाकिस्तान व बांगलादेश के कुछ मुख्य शहर हैं। एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले यहाँ 130 शहर हैं। रंगून, बैंकाक, सेगोन, हनोई, केण्टन आदि दक्षिण-पूर्वी एशिया के पाँच मुख्य शहर हैं। हांगकांग द्वीप में विक्टोरिया भी एक महत्त्वपूर्ण शहर है। जकार्ता इण्डोनेशिया का तथा मनाली फिलीपीन्स का प्रमुख शहर है। टाउन विले व रौकहेम्पटन उत्तरी आस्ट्रेलिया के दो मुख्य शहर हैं।