चौथ माता कीगणेश चतुर्थी व्रत कथा माघ महीने में की जाती है जिसे तिल चौथ व्रत कथा भी कहते है. हिन्दू धर्म के लोग इस त्यौहार को बड़ी ही आस्था से मनाते हैं. माघ बड़ी तिल चौथ व्रत कथा सुहागन महिलाएं जिन्हें पुत्र, धन-संपत्ति, सुख, समृद्धि चाहते हैं और कुँवारी कन्याएं जिन्हें अच्छे वर की इच्छा होती है, वो गणेश चतुर्थी व्रत कथा का पूर्णता पालन करती हैं.
सेठानी जी का गणेश चतुर्थी व्रत कथा के बारें में सुनना
एक सेठानी जी के संतान नहीं होती थी. एक दिन पड़ोस की औरतों को उसने चौथ की कहानी सुनते हुए देखा और पूछा कि इससे क्या होता है, तो औरतों ने कहा कि चौथ का व्रत करने से अन्न, धन पुत्र व सुहाग मिलता है.
सेठानी जी की गणेश चतुर्थी व्रत कथा से मनोकामना पूर्ण होना
इस पर सेठानी बोली की हे चौथ माता ! मैं नहाई रह जाऊं तो सवा सेर का तिलकुटा व चौथ का व्रत भी करूँ बाद में वह नाई रह गई, फिर सेठानी बोली की हे चौथ माता ! यदि मेरे पुत्र हो जाए तो ढाई सेर का तिलकुटा करूं. उसे पुत्र की प्राप्ति हो गयी और पुत्र विवाह योग्य भी हो गया. फिर सेठानी बोली की हे चौथ माता ! मेरे बेटे का विवाह हो जाए तो तेरे को सवा सेर का तिलकुटा करूँ. बेटे का विवाह हो गया और बारात रवाना हो गई.
सेठानी जी को गणेश जी द्वारा दंड देना
चौथ गणेश ने आपस में सोची कि सेठानी जब से नहाई रही है तब से तिलकुटा बोल रही है पर किया कुछ भी नहीं है. यदि इसको चमत्कार नहीं बताया तो अपने को कलयुग में कोई नहीं मानेगा. बेटे के तीन फेरे लेते ही चौथ माता गरज के साथ आई और उसे फेरों से उठाकर गांव के बाहर पीपल के पेड़ पर बैठा दिया. वह लड़की गणगौर पूजने के लिए गांव के बाहर जाती थी तो वह पीपल के पेड़ पर से आवाज देता कि आओ मेरी अधब्याही ! उसने दुल्हे का रूप बना रखा था. यह बात लड़की ने अपनी मां से कही तो उसने भी आकर देखा तो वह उसके ही जमाई निकले. उसने पूछा कि आप यहां क्यों बैठे हुए हो ! तो जमाई बोला कि मैं तो चौथ गणेश के पास गिरवी रखा हूं, मेरी मां ने तिलकुटा बोला था वह किया नहीं सो चौथ गणेश नाराज हो गए. लड़की की मां जमाई जी की माँ के पास जाकर बोली कि तिलकुटा बोला था. इस पर दोनों ने चौथ माता की सवा-सवामनी बोल दी. चौथ गणेश राजी हो गए और उन्होंने दूल्हे को उठाकर फेरों में बिठा दिया, सेठानी के बेटे बहू घर आ गए.
दोनों ने चौथ माता के सवा-सवामणी कर दी और व्रत करना शुरू कर दिया.